Sharab Poetry (page 61)
हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सूरूर
हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है
आल-ए-अहमद सूरूर
ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया
आल-ए-अहमद सूरूर
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
आल-ए-अहमद सूरूर
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
आल-ए-अहमद सूरूर
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
आग़ा अकबराबादी
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
आग़ा अकबराबादी
शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात
आग़ा अकबराबादी
रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं
आग़ा अकबराबादी
मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
आग़ा अकबराबादी
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह
आग़ा अकबराबादी
कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज
आग़ा अकबराबादी
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
आग़ा अकबराबादी
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
आग़ा अकबराबादी
नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ
आग़ा अकबराबादी
नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ
आग़ा अकबराबादी
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
आग़ा अकबराबादी
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
आग़ा अकबराबादी
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
आग़ा अकबराबादी
जा लड़ी यार से हमारी आँख
आग़ा अकबराबादी
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
आग़ा अकबराबादी
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
आग़ा अकबराबादी
गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन
ए जी जोश