Sharab Poetry (page 50)
इक जुनूँ कहिए उसे जो मिरे सर से निकला
अलीम मसरूर
अहद-ए-कम-कोशी में ये भी हौसला मैं ने किया
आलमताब तिश्ना
तन्हाई में
अख़्तर-उल-ईमान
ग़म का आहंग है
अख़्तर ज़ियाई
तेरा हर राज़ छुपाए हुए बैठा है कोई
अख़्तर सिद्दीक़ी
दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी
अख़्तर शीरानी
वक़्त की क़द्र
अख़्तर शीरानी
नज़्र-ए-वतन
अख़्तर शीरानी
मुझे ले चल
अख़्तर शीरानी
जहाँ 'रेहाना' रहती थी
अख़्तर शीरानी
एक शाएरा की शादी पर
अख़्तर शीरानी
दावत
अख़्तर शीरानी
बस्ती की लड़कियों के नाम
अख़्तर शीरानी
बरखा-रुत
अख़्तर शीरानी
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
अख़्तर शीरानी
यारो कू-ए-यार की बातें करें
अख़्तर शीरानी
यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
अख़्तर शीरानी
वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें
अख़्तर शीरानी
उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें
अख़्तर शीरानी
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले
अख़्तर शीरानी
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर
अख़्तर शीरानी
न भूल कर भी तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते
अख़्तर शीरानी
मोहब्बत की दुनिया में मशहूर कर दूँ
अख़्तर शीरानी
मिरी शाम-ए-ग़म को वो बहला रहे हैं
अख़्तर शीरानी
मिरी आँखों से ज़ाहिर ख़ूँ-फ़िशानी अब भी होती है
अख़्तर शीरानी
ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ
अख़्तर शीरानी
किस की आँखों का लिए दिल पे असर जाते हैं
अख़्तर शीरानी
ख़यालिस्तान-ए-हस्ती में अगर ग़म है ख़ुशी भी है
अख़्तर शीरानी
झूम कर बदली उठी और छा गई
अख़्तर शीरानी
हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं
अख़्तर शीरानी