Sharab Poetry (page 46)
गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं
अमीर मीनाई
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
अमीर मीनाई
चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़
अमीर मीनाई
बात करने में तो जाती है मुलाक़ात की रात
अमीर मीनाई
'अमीक़' छेड़ ग़ज़ल ग़म की इंतिहा कब है
अमीक़ हनफ़ी
जो मय-कदे से भी दामन बचा बचा के चले
अमीन राहत चुग़ताई
जरस-ए-मय ने पुकारा है उठो और सुनो
अमीन राहत चुग़ताई
हमीं थे जान-ए-बहाराँ हमीं थे रंग-ए-तरब
अमीन राहत चुग़ताई
देख कोह-ए-ना-रसा बन कर भरम रक्खा तिरा
अमीन राहत चुग़ताई
यूँ दिल है सर-ब-सज्दा किसी के हुज़ूर में
अमीन हज़ीं
लाले पड़े हैं जान के जीने का एहतिमाम कर
अमीन हज़ीं
हर इक रिश्ता बिखरा बिखरा क्यूँ लगता है
अम्बर खरबंदा
लुत्फ़ अब ज़ीस्त का ऐ गर्दिश-ए-अय्याम नहीं
अमानत लखनवी
क़ौमी तराना
अल्ताफ़ मशहदी
कौन उतरा नज़र के ज़ीने से
अल्ताफ़ मशहदी
मर्सिया-ए-देहली-ए-मरहूम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
कह दो कोई साक़ी से कि हम मरते हैं प्यासे
अल्ताफ़ हुसैन हाली
जीते जी मौत के तुम मुँह में न जाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ
अल्ताफ़ हुसैन हाली
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
अल्ताफ़ हुसैन हाली
दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
अल्ताफ़ हुसैन हाली
बात कुछ हम से बन न आई आज
अल्ताफ़ हुसैन हाली
एक उम्र से तुझे मैं बे-उज़्र पी रहा हूँ
आलोक यादव
भटका करूँगा कब तक राहों में तेरी आ कर
आलोक यादव
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
अल्लामा इक़बाल
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
अल्लामा इक़बाल
नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
अल्लामा इक़बाल
मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी
अल्लामा इक़बाल
इल्म में भी सुरूर है लेकिन
अल्लामा इक़बाल
तुलू-ए-इस्लाम
अल्लामा इक़बाल