Sharab Poetry (page 43)
कहाँ है शैख़ को सुध-बुध मज़ीद पीने की
अनवर शऊर
उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से
अनवर शऊर
कट चुकी थी ये नज़र सब से बहुत दिन पहले
अनवर शऊर
काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
अनवर शऊर
इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं
अनवर शऊर
अगरचे आइना-ए-दिल में है क़याम उस का
अनवर शऊर
क्यूँ ख़फ़ा हम से हो ख़ता क्या है
अनवर सहारनपुरी
आबाद अब न होगा मय-ख़ाना ज़िंदगी का
अनवर सहारनपुरी
ज़ुल्मतों में रौशनी की जुस्तुजू करते रहो
अनवर साबरी
तलख़ाबा-ए-ग़म ख़ंदा-जबीं हो के पिए जा
अनवर साबरी
तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए
अनवर साबरी
निगाह-ओ-दिल से गुज़री दास्ताँ तक बात जा पहुँची
अनवर साबरी
मुद्दतों से कोई पैग़ाम नहीं आता है
अनवर साबरी
कुछ अबरुओं पे बल भी हैं ख़ंदा-लबी के साथ
अनवर साबरी
मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
अनवर मिर्ज़ापुरी
वादा-ए-शाम-ए-फ़र्दा पे ऐ दिल मुझे गर यक़ीं ही न आए तो मैं क्या करूँ
अनवर मिर्ज़ापुरी
मैं तो समझा था जिस वक़्त मुझ को वो मिलेंगे तो जन्नत मिलेगी
अनवर मिर्ज़ापुरी
मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
दुनिया भी अजब क़ाफ़िला-ए-तिश्ना-लबाँ है
अनवर मसूद
पी भी जा शैख़ कि साक़ी की इनायत है शराब
अनवर देहलवी
फेंकिए क्यूँ मय-ए-नाक़िस साक़ी
अनवर देहलवी
यूसुफ़-ए-हुस्न का हुस्न आप ख़रीदार रहा
अनवर देहलवी
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
अनवर देहलवी
हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का
अनवर देहलवी
अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब
अनवर देहलवी
आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ
अनवर देहलवी
ये ग़ज़ल की अंजुमन है ज़रा एहतिमाम कर लो
अनवर मोअज़्ज़म
हमें भूला नहीं अफ़्साना दिल का
अनवर मोअज़्ज़म