Sharab Poetry (page 32)
वो क़ुलक़ुल-ए-मीना में चर्चे मिरी तौबा के
बेदम शाह वारसी
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
बेदम शाह वारसी
यूँ गुलशन-ए-हस्ती की माली ने बिना डाली
बेदम शाह वारसी
ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है
बेदम शाह वारसी
ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक
बेदम शाह वारसी
तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं
बेदम शाह वारसी
तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो
बेदम शाह वारसी
सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
बेदम शाह वारसी
शादी ओ अलम सब से हासिल है सुबुकदोशी
बेदम शाह वारसी
पहले शर्मा के मार डाला
बेदम शाह वारसी
न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है
बेदम शाह वारसी
न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना
बेदम शाह वारसी
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
बेदम शाह वारसी
खींची है तसव्वुर में तस्वीर-ए-हम-आग़ोशी
बेदम शाह वारसी
कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा
बेदम शाह वारसी
काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए
बेदम शाह वारसी
जुस्तुजू करते ही करते खो गया
बेदम शाह वारसी
हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे
बेदम शाह वारसी
गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने
बेदम शाह वारसी
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
बेदम शाह वारसी
अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है
बेदम शाह वारसी
अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
तरहदार कहाँ से लाऊँ
बेबाक भोजपुरी
नक़्श बर-दीवार
बेबाक भोजपुरी
हिकमत का बुत-ख़ाना
बेबाक भोजपुरी
फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई
बेबाक भोजपुरी
लहू टपका किसी की आरज़ू से
बयान मेरठी
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
बयान मेरठी
खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का
बयान मेरठी
ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स
बयान मेरठी