Sharab Poetry (page 31)
मुँह में वाइज़ के भी भर आता है पानी अक्सर
बेख़ुद देहलवी
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
बेख़ुद देहलवी
वो और तसल्ली मुझे दें उन की बला दे
बेख़ुद देहलवी
उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे
बेख़ुद देहलवी
सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है
बेख़ुद देहलवी
न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता
बेख़ुद देहलवी
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं
बेख़ुद देहलवी
जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे
बेख़ुद देहलवी
हैं निकहत-ए-गुल बाग़ में ऐ बाद-ए-सबा हम
बेख़ुद देहलवी
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो
बेख़ुद देहलवी
दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा
बेख़ुद देहलवी
दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया
बेख़ुद देहलवी
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
बेख़ुद देहलवी
और साक़ी पिला अभी क्या है
बेख़ुद देहलवी
अदू के ताकने को तुम इधर देखो उधर देखो
बेख़ुद देहलवी
अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था
बेख़ुद देहलवी
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
बेखुद बदायुनी
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
बेखुद बदायुनी
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
बेकल उत्साही
उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे
बेकल उत्साही
तमन्ना बन गई है माया-ए-इल्ज़ाम क्या होगा
बेकल उत्साही
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ
बेकल उत्साही
जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे
बेकल उत्साही
फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम
बेकल उत्साही
यूँ तो जो चाहे यहाँ साहब-ए-महफ़िल हो जाए
बहज़ाद लखनवी
तिरे इश्क़ में ज़िंदगानी लुटा दी
बहज़ाद लखनवी
मोहब्बत मुस्तक़िल कैफ़-आफ़रीं मालूम होती है
बहज़ाद लखनवी
मसरूर भी हूँ ख़ुश भी हूँ लेकिन ख़ुशी नहीं
बहज़ाद लखनवी
है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे
बहज़ाद लखनवी