Sharab Poetry (page 29)
तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं
दाग़ देहलवी
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
दाग़ देहलवी
पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह
दाग़ देहलवी
फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर
दाग़ देहलवी
पयामी कामयाब आए न आए
दाग़ देहलवी
निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है
दाग़ देहलवी
मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है
दाग़ देहलवी
मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं
दाग़ देहलवी
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
दाग़ देहलवी
हाथ निकले अपने दोनों काम के
दाग़ देहलवी
दिल-ए-नाकाम के हैं काम ख़राब
दाग़ देहलवी
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
दाग़ देहलवी
बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
दाग़ देहलवी
बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
दाग़ देहलवी
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
दाग़ देहलवी
चेहरे पे नूर-ए-सुब्ह सियह गेसुओं में रात
दाएम ग़व्वासी
नज़रों के गिर्द यूँ तो कोई दायरा न था
डी. राज कँवल
खुलती है चाँदनी जहाँ वो कोई बाम और है
डी. राज कँवल
दुनिया पत्थर फेंक रही है झुँझला कर फ़र्ज़ानों पर
डी. राज कँवल
दुनिया में दिल लगा के बहुत सोचते रहे
डी. राज कँवल
इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई
चराग़ हसन हसरत
फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया
चरख़ चिन्योटी
फ़ज़ा में कैफ़-फ़शाँ फिर सहाब है साक़ी
चरख़ चिन्योटी
बे-ख़ुदी में है न वो पी कर सँभल जाने में है
चरख़ चिन्योटी
बज़्म-ए-जानाँ में मोहब्बत का असर देखेंगे
चरख़ चिन्योटी
बज़्म-ए-जानाँ में मोहब्बत का असर देखेंगे
चरख़ चिन्योटी
जहाँ रंग-ओ-बू है और मैं हूँ
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
हर आरज़ू में रंग है बाग़-ओ-बहार का
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी