Sharab Poetry (page 20)
हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया
फ़िराक़ गोरखपुरी
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
सर-ए-महफ़िल हमारे दिल को लूटा चश्म-ए-साक़ी ने
फ़िगार उन्नावी
साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की
फ़िगार उन्नावी
मायूस दिलों को अब छेड़ो भी तो क्या हासिल
फ़िगार उन्नावी
दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल
फ़िगार उन्नावी
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
फ़िगार उन्नावी
शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है
फ़िगार उन्नावी
सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता
फ़िगार उन्नावी
कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा
फ़िगार उन्नावी
किसी अपने से होती है न बेगाने से होती है
फ़िगार उन्नावी
हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है
फ़िगार उन्नावी
हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते
फ़िगार उन्नावी
ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता
फ़िगार उन्नावी
आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी
फ़िगार उन्नावी
ख़राब-हाल हूँ हर हाल में ख़राब रहा
फ़ज़लुर्रहमान
है सख़्त मुश्किल में जान साक़ी पिलाए आख़िर किधर से पहले
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़मों से खेलते रहना कोई हँसी भी नहीं
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ख़िज़ाँ का रंग दरख़्तों पे आ के बैठ गया
फ़ाज़िल जमीली
कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं
फ़ाज़िल जमीली
वो बर्क़ का हो कि मौजों के पेच-ओ-ताब का रंग
फ़ाज़िल अंसारी
हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा
फ़ाज़िल अंसारी
अश्क आया आँख में जलता हुआ
फ़ाज़िल अंसारी
इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
चंद साँसें हैं मिरा रख़्त-ए-सफ़र ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
निकला जो चिलमनों से वो चेहरा आफ़्ताबी
फ़य्याज़ फ़ारुक़ी
ख़िज़ाँ में चीनी चाय की दावत
फ़े सीन एजाज़
उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले
फ़े सीन एजाज़
ग़म दुनिया के याद जब आएँ उस की याद भी आने दो
फ़े सीन एजाज़