Sharab Poetry (page 19)
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
ग़ालिब
आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
ग़ालिब
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं
ग़ालिब
इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ
जोर्ज पेश शोर
दिल अगर माइल-ए-इ'ताब न हो
ग़व्वास क़ुरैशी
सुब्ह हैं सज्दे में हम तो शाम साक़ी के हुज़ूर
गणेश बिहारी तर्ज़
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
गणेश बिहारी तर्ज़
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा
गणेश बिहारी तर्ज़
रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही
गणेश बिहारी तर्ज़
कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह
गणेश बिहारी तर्ज़
दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह
गणेश बिहारी तर्ज़
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई
गणेश बिहारी तर्ज़
उन का मंशा है न फैले ख़स-ओ-ख़ाशाक में आग
फ़ितरत अंसारी
नए जहाँ में पुरानी शराब ले आए
फ़ितरत अंसारी
दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो
फ़ितरत अंसारी
बा'द मुद्दत के ख़याल-ए-मय-ओ-मीना आया
फ़ितरत अंसारी
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
फ़िराक़ गोरखपुरी
शाम-ए-अयादत
फ़िराक़ गोरखपुरी
आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
फ़िराक़ गोरखपुरी
तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था
फ़िराक़ गोरखपुरी
सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात
फ़िराक़ गोरखपुरी
निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
फ़िराक़ गोरखपुरी
मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था
फ़िराक़ गोरखपुरी
कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे
फ़िराक़ गोरखपुरी
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
हो के सर-ता-ब-क़दम आलम-ए-असरार चला
फ़िराक़ गोरखपुरी