Sharab Poetry (page 18)
लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती
ग़ालिब
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
ग़ालिब
क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है
ग़ालिब
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
ग़ालिब
कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में
ग़ालिब
काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें
ग़ालिब
इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
ग़ालिब
हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है
ग़ालिब
हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द
ग़ालिब
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
ग़ालिब
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
ग़ालिब
हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर
ग़ालिब
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
ग़ालिब
हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या
ग़ालिब
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
ग़ालिब
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
ग़ालिब
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से
ग़ालिब
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
ग़ालिब
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स
ग़ालिब
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
ग़ालिब
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
ग़ालिब
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
ग़ालिब
फ़रियाद की कोई लय नहीं है
ग़ालिब
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
ग़ालिब
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
ग़ालिब
चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है
ग़ालिब
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
ग़ालिब
चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे
ग़ालिब
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
ग़ालिब
बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है
ग़ालिब