Sharab Poetry (page 17)
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
ग़ालिब
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
ग़ालिब
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
ग़ालिब
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है
ग़ालिब
सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है
ग़ालिब
सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
ग़ालिब
शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
ग़ालिब
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
ग़ालिब
सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है
ग़ालिब
सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती
ग़ालिब
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
ग़ालिब
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ग़ालिब
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
ग़ालिब
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
ग़ालिब
रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
ग़ालिब
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
ग़ालिब
क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ
ग़ालिब
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
ग़ालिब
निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की
ग़ालिब
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
ग़ालिब
नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं
ग़ालिब
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
ग़ालिब
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
ग़ालिब
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
ग़ालिब
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
ग़ालिब
मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में
ग़ालिब
मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
ग़ालिब
मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए
ग़ालिब
मैं उन्हें छेड़ूँ और वो कुछ न कहें
ग़ालिब
मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ
ग़ालिब