Sharab Poetry (page 15)
अपने अंजाम से डरता हूँ मैं
गोपाल मित्तल
आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे
गिरिजा व्यास
वक़्त से हम गिला नहीं करते
ग़ुला मोहम्मद सफ़ीर
तुम यूँ ही नाराज़ हुए हो वर्ना मय-ख़ाने का पता
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ख़्वाब कहाँ से टूटा है ताबीर से पूछते हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
वाइ'ज़ ये मय-कदा है न मस्जिद कि इस जगह
ग़ुलाम मौला क़लक़
वाइ'ज़ ने मय-कदे को जो देखा तो जल गया
ग़ुलाम मौला क़लक़
रहम कर मस्तों पे कब तक ताक़ पर रक्खेगा तू
ग़ुलाम मौला क़लक़
वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है
ग़ुलाम मौला क़लक़
तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
ग़ुलाम मौला क़लक़
तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं
ग़ुलाम मौला क़लक़
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
ग़ुलाम मौला क़लक़
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
ग़ुलाम मौला क़लक़
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
ग़ुलाम मौला क़लक़
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
ग़ुलाम मौला क़लक़
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
ग़ुलाम मौला क़लक़
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
ग़ुलाम मौला क़लक़
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
ग़ुलाम मौला क़लक़
दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की
ग़ुलाम मौला क़लक़
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
ग़ुलाम मौला क़लक़
चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
ग़ुलाम मौला क़लक़
बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में
ग़ुलाम मौला क़लक़
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
ग़ुलाम मौला क़लक़
किसी को ज़हर दूँगा और किसी को जाम दूँगा
ग़ुलाम हुसैन साजिद
तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी
ग़ुबार भट्टी
मिरे मुद्दआ-ए-उल्फ़त का पयाम बन के आई
ग़ुबार भट्टी