Sharab Poetry (page 13)
दस्तूर
हबीब जालिब
थोड़ी थोड़ी राह में पी लेंगे गर कम है तो क्या
हबीब मूसवी
तेज़ी-ए-बादा कुजा तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार कुजा
हबीब मूसवी
पिला साक़ी मय-ए-गुल-रंग फिर काली घटा आई
हबीब मूसवी
मोहतसिब तू ने किया गर जाम-ए-सहबा पाश पाश
हबीब मूसवी
मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है
हबीब मूसवी
मय-कदा है शैख़ साहब ये कोई मस्जिद नहीं
हबीब मूसवी
क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा
हबीब मूसवी
ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े
हबीब मूसवी
जा सके न मस्जिद तक जम्अ' थे बहुत ज़ाहिद
हबीब मूसवी
फ़स्ल-ए-गुल आई उठा अब्र चली सर्द हुआ
हबीब मूसवी
वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए
हबीब मूसवी
शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है
हबीब मूसवी
शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था
हबीब मूसवी
रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी
हबीब मूसवी
क़त्अ होता रहे इस तरह बयान-ए-वाइज़
हबीब मूसवी
मेहर-ओ-उल्फ़त से मआल-ए-तहज़ीब
हबीब मूसवी
लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले
हबीब मूसवी
है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है
हबीब मूसवी
फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है
हबीब मूसवी
फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे
हबीब मूसवी
देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है
हबीब मूसवी
दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस
हबीब मूसवी
बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा
हबीब मूसवी
अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ
हबीब मूसवी
उस को देखा तो नाम भूल गया
हबीब कैफ़ी
ये कैफ़ कैफ़-ए-मोहब्बत है कोई क्या जाने
हबीब अशअर देहलवी
तौर बे-तौर हुए जाते हैं
हबीब अशअर देहलवी
ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है
हबीब अहमद सिद्दीक़ी