Sharab Poetry (page 12)
कृष्ण कन्हैया
हफ़ीज़ जालंधरी
बसंती तराना
हफ़ीज़ जालंधरी
अभी तो मैं जवान हूँ
हफ़ीज़ जालंधरी
अब ख़ूब हँसेगा दीवाना
हफ़ीज़ जालंधरी
आख़िरी रात
हफ़ीज़ जालंधरी
ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए
हफ़ीज़ जालंधरी
वो अब्र जो मय-ख़्वार की तुर्बत पे न बरसे
हफ़ीज़ जालंधरी
निगाह-ए-आरज़ू-आमोज़ का चर्चा न हो जाए
हफ़ीज़ जालंधरी
मिल जाए मय तो सज्दा-ए-शुकराना चाहिए
हफ़ीज़ जालंधरी
मजाज़ ऐन-ए-हक़ीक़त है बा-सफ़ा के लिए
हफ़ीज़ जालंधरी
कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा
हफ़ीज़ जालंधरी
इन तल्ख़ आँसुओं को न यूँ मुँह बना के पी
हफ़ीज़ जालंधरी
दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ
हफ़ीज़ जालंधरी
अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई
हफ़ीज़ जालंधरी
आज की रात
हफ़ीज़ होशियारपुरी
नर्गिस पे तो इल्ज़ाम लगा बे-बसरी का
हफ़ीज़ होशियारपुरी
इक उम्र से हम तुम आश्ना हैं
हफ़ीज़ होशियारपुरी
अब कोई आरज़ू नहीं शौक़-ए-पयाम के सिवा
हफ़ीज़ होशियारपुरी
पैग़ाम ईद
हफ़ीज़ बनारसी
ये कैसी हवा-ए-ग़म-ओ-आज़ार चली है
हफ़ीज़ बनारसी
क़दम शबाब में अक्सर बहकने लगता है
हफ़ीज़ बनारसी
मुद्दत की तिश्नगी का इनआ'म चाहता हूँ
हफ़ीज़ बनारसी
लहू की मय बनाई दिल का पैमाना बना डाला
हफ़ीज़ बनारसी
जो नज़र से बयान होती है
हफ़ीज़ बनारसी
जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई
हफ़ीज़ बनारसी
हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है
हफ़ीज़ बनारसी
गुमराह कह के पहले जो मुझ से ख़फ़ा हुए
हफ़ीज़ बनारसी
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी
हादी मछलीशहरी
देख कर शम्अ के आग़ोश में परवाने को
हादी मछलीशहरी
नीलो
हबीब जालिब