Heart Broken Poetry (page 203)
तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे
बख़्श लाइलपूरी
समुंदर का तमाशा कर रहा हूँ
बख़्श लाइलपूरी
रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है
बख़्श लाइलपूरी
रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत
बख़्श लाइलपूरी
क़ातिल हुआ ख़मोश तो तलवार बोल उठी
बख़्श लाइलपूरी
पड़े हैं राह में जो लोग बे-सबब कब से
बख़्श लाइलपूरी
मिरे हर लफ़्ज़ की तौक़ीर रहने के लिए है
बख़्श लाइलपूरी
कोई शय दिल को बहलाती नहीं है
बख़्श लाइलपूरी
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
बख़्श लाइलपूरी
जो पी रहा है सदा ख़ून बे-गुनाहों का
बख़्श लाइलपूरी
हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जाँ का हुनर नहीं आया
बख़्श लाइलपूरी
दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए
बख़्श लाइलपूरी
धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा
बहराम तारिक़
हम-कलामी में दर-ओ-दीवार से
बहराम तारिक़
ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा
बहराम जी
नहीं बुत-ख़ाना ओ काबा पे मौक़ूफ़
बहराम जी
यार को हम ने बरमला देखा
बहराम जी
कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है
बहराम जी
किया है संदलीं-रंगों ने दर बंद
बहराम जी
जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है
बहराम जी
हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे
बहराम जी
ग़मगीं नहीं हूँ दहर में तो शाद भी नहीं
बहराम जी
दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह
बहराम जी
दुनिया में इबादत को तिरी आए हुए हैं
बहराम जी
बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की
बहराम जी
'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का
ज़फ़र
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
ज़फ़र
क्या पूछता है हम से तू ऐ शोख़ सितमगर
ज़फ़र
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
ज़फ़र
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
ज़फ़र