Heart Broken Poetry (page 201)
कैसा लम्हा आन पड़ा है
बक़ा बलूच
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
बक़ा बलूच
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
बक़ा बलूच
कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा
बनो ताहिरा सईद
किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
बनो ताहिरा सईद
बीसवीं सदी के हम शाइ'र-ए-परेशाँ हैं
बनो ताहिरा सईद
मार देती है ज़िंदगी ठोकर
बलवान सिंह आज़र
ख़त्म होता ही नहीं मेरा सफ़र
बलवान सिंह आज़र
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
बलवान सिंह आज़र
ऐसी होने लगी थकन उस को
बलवान सिंह आज़र
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
बलवान सिंह आज़र
सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
बलवान सिंह आज़र
रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही
बलवान सिंह आज़र
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
बलवान सिंह आज़र
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं
बलवान सिंह आज़र
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
बलवान सिंह आज़र
जब कोई टीस दिल दुखाती है
बलवान सिंह आज़र
हादसा होता रहा है मुझ में
बलवान सिंह आज़र
दो क़दम साथ क्या चला रस्ता
बलवान सिंह आज़र
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
बलवान सिंह आज़र
तहलील
बलराज कोमल
शायद
बलराज कोमल
मैं, एक और मैं
बलराज कोमल
इत्तिफ़ाक़
बलराज कोमल
गिर्या-ए-सगाँ
बलराज कोमल
एक पुर-असरार सदा
बलराज कोमल
ड्रग स्टोर
बलराज कोमल
दीदा-ए-तर
बलराज कोमल
अकेली
बलराज कोमल
खोया खोया उदास सा होगा
बलराज कोमल