Heart Broken Poetry (page 200)
चाहा बहुत कि इश्क़ की फिर इब्तिदा न हो
बाक़र मेहदी
बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
बाक़र मेहदी
बरसों पढ़ कर सरकश रह कर ज़ख़्मी हो कर समझा मैं
बाक़र मेहदी
बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!
बाक़र मेहदी
बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है
बाक़र मेहदी
औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे
बाक़र मेहदी
और कोई जो सुने ख़ून के आँसू रोए
बाक़र मेहदी
अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का
बाक़र मेहदी
अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!
बाक़र मेहदी
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
बाक़र मेहदी
मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास
बाक़र आगाह वेलोरी
देखते देखते सितम तेरा
बाक़र आगाह वेलोरी
शाहिद-ए-ग़ैब हुवैदा न हुआ था सो हुआ
बाक़र आगाह वेलोरी
रहता है ज़ुल्फ़-ए-यार मिरे मन से मन लगा
बाक़र आगाह वेलोरी
नहीं है अश्क से ये ख़ून-ए-नाब आँखों में
बाक़र आगाह वेलोरी
महव-ए-फ़रियाद हो गया है दिल
बाक़र आगाह वेलोरी
लब-ए-जाँ-बख़्श के मीठे का तेरे जो मज़ा पाया
बाक़र आगाह वेलोरी
क्यूँ कर न ऐसे जीने से या रब मलूल हूँ
बाक़र आगाह वेलोरी
अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा
बाक़र आगाह वेलोरी
तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
बक़ा बलूच
मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं
बक़ा बलूच
कैसा लम्हा आन पड़ा है
बक़ा बलूच
एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम
बक़ा बलूच
नए समय की कोयल
बक़ा बलूच
माँ
बक़ा बलूच
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
बक़ा बलूच
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
बक़ा बलूच
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
बक़ा बलूच
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
बक़ा बलूच
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
बक़ा बलूच