Friendship Poetry (page 8)
अपना अपना दुख बतलाना होता है
इलियास बाबर आवान
ज़ब्त ने भींचा तो आ'साब की चीख़ें निकलीं
इकराम आज़म
पहले तो आती थीं ईदें भी तुम्हारे आए
इकराम आज़म
दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें
इज्तिबा रिज़वी
इक बड़ी जंग लड़ रहा हूँ
इफ़्तिख़ार राग़िब
छोड़ा न मुझे दिल ने मिरी जान कहीं का
इफ़्तिख़ार राग़िब
चाहतों का सिलसिला है मुस्तक़िल
इफ़्तिख़ार राग़िब
इस क़दर भी तो न जज़्बात पे क़ाबू रक्खो
इफ़्तिख़ार नसीम
मोहब्बत और इबादत में फ़र्क़ तो है नाँ
इफ़्तिख़ार मुग़ल
घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदन
इफ़्तिख़ार मुग़ल
रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा
इफ़्तिख़ार मुग़ल
रख-रखाव में कोई ख़्वार नहीं होता यार
इफ़्तिख़ार मुग़ल
कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने
इफ़्तिख़ार मुग़ल
धुँद
इफ़्तेख़ार जालिब
दर-ओ-दीवार ख़ुद-कुशी कर लें
इफ़्तिख़ार फलक काज़मी
वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
मैं उस से झूट भी बोलूँ तो मुझ से सच बोले
इफ़्तिख़ार आरिफ़
दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
अजीब ही था मिरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शहर इल्म के दरवाज़े पर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
मिरा ज़ेहन मुझ को रहा करे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया
इफ़्तिख़ार आरिफ़
तमाम दोस्त अलाव के गिर्द जम्अ थे और
इदरीस बाबर
मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त
इदरीस बाबर
हाथ दुनिया का भी है दिल की ख़राबी में बहुत
इदरीस बाबर
हाँ ऐ गुबार-ए-आश्ना मैं भी था हम-सफ़र तिरा
इदरीस बाबर
वो गुल वो ख़्वाब-शार भी नहीं रहा
इदरीस बाबर