Friendship Poetry (page 14)
बुत-ए-बे-दर्द का ग़म मोनिस-ए-हिज्राँ निकला
हसरत मोहानी
बरकतें सब हैं अयाँ दौलत-ए-रूहानी की
हसरत मोहानी
बदल-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ से लाऊँ
हसरत मोहानी
बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा
हसरत मोहानी
और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
हसरत मोहानी
अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम
हसरत मोहानी
आसान-ए-हक़ीकी है न कुछ सहल-ए-मजाज़ी
हसरत मोहानी
शो'ला ही सही आग लगाने के लिए आ
हसरत जयपुरी
भर के नज़र यार न देखा कभी
हसरत अज़ीमाबादी
यार इब्तिदा-ए-इश्क़ से बे-ज़ार ही रहा
हसरत अज़ीमाबादी
या इलाही मिरा दिलदार सलामत बाशद
हसरत अज़ीमाबादी
साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश
हसरत अज़ीमाबादी
राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल
हसरत अज़ीमाबादी
मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी
हसरत अज़ीमाबादी
कम-तर या बेशतर गए हम
हसरत अज़ीमाबादी
जो हमें चाहे उस के चाकिर हैं
हसरत अज़ीमाबादी
जिस का मयस्सर न था भर के नज़र देखना
हसरत अज़ीमाबादी
इश्क़ में गुल के जो नालाँ बुलबुल-ए-ग़मनाक है
हसरत अज़ीमाबादी
इन दोनों घर का ख़ाना-ख़ुदा कौन ग़ैर है
हसरत अज़ीमाबादी
है रश्क-ए-वस्ल से ग़म-ए-दिलदार ही भला
हसरत अज़ीमाबादी
गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता
हसरत अज़ीमाबादी
दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का
हसरत अज़ीमाबादी
बे-वफ़ा गो मिले न तू मुझ को
हसरत अज़ीमाबादी
आश्ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ
हसरत अज़ीमाबादी
ज़र्द मौसम में भी इक शाख़ हरी रहती है
हाशिम रज़ा जलालपुरी
तुम चुप रहे पयाम-ए-मोहब्बत यही तो है
हाशिम रज़ा जलालपुरी
मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ
हाशिम रज़ा जलालपुरी
मज़हब-ए-इश्क़ में शजरा नहीं देखा जाता
हाशिम रज़ा जलालपुरी
दश्त में ख़ाक उड़ाते हैं दुआ करते हैं
हाशिम रज़ा जलालपुरी
खुला ये राज़ कि ये ज़िंदगी भी होती है
हसीब सोज़