Friendship Poetry (page 10)
कब लौटा है बहता पानी बिछड़ा साजन रूठा दोस्त
इब्न-ए-इंशा
फिर शाम हुई
इब्न-ए-इंशा
दिल-आशोब
इब्न-ए-इंशा
ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!
इब्न-ए-इंशा
सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके
इब्न-ए-इंशा
पीत करना तो हम से निभाना सजन हम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन
इब्न-ए-इंशा
जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो
इब्न-ए-इंशा
जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया
इब्न-ए-इंशा
और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का
इब्न-ए-इंशा
लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए
हुसैन माजिद
सब मुतमइन थे सुब्ह का अख़बार देख कर
हुसैन ताज रिज़वी
मर-मिटे जब से हम उस दुश्मन-ए-दीं पर साहब
हुसैन मजरूह
राहत ओ रंज से जुदा हो कर
हुसैन आबिद
ख़यालों ख़यालों में किस पार उतरे
हुसैन आबिद
वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा
हुरमतुल इकराम
तय किया इस तरह सफ़र तन्हा
हुरमतुल इकराम
एक दुनिया कह रही है कौन किस का आश्ना
हुरमतुल इकराम
दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग
हुरमतुल इकराम
फ़सील शहर की इतनी बुलंद ओ सख़्त हुई
हुमैरा रहमान
ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
हुमैरा राहत
ये कहना था जो दुनिया कह रही है
हुमैरा राहत
कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई
हुमैरा राहत
वो तक़ाज़ा-ए-जुनूँ अब के बहारों में न था
होश तिर्मिज़ी
गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए
होश तिर्मिज़ी
'शाइर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
हिमायत अली शाएर
मुद्दत के बाद
हिमायत अली शाएर
आईना-दर-आईना
हिमायत अली शाएर
जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए
हिमायत अली शाएर
हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
हिमायत अली शाएर
आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना
हिमायत अली शाएर