ख्वाब Poetry (page 59)
इधर ख़याल मिरे दिल में ज़ुल्फ़ का गुज़रा
ज़फ़र
चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
ज़फ़र
वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले
ज़फ़र
पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या
ज़फ़र
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम
ज़फ़र
मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ
ज़फ़र
क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ
ज़फ़र
हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में
ज़फ़र
क़दमों से इतना दूर किनारा कभी न था
बद्र-ए-आलम ख़लिश
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
चुप थे जो बुत सवाल ब-लब बोलने लगे
बद्र-ए-आलम ख़लिश
हर शख़्स को गुमान कि मंज़िल नहीं है दूर
बद्र वास्ती
नवेद-ए-सफ़र
बद्र वास्ती
तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
बद्र वास्ती
किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच
बद्र वास्ती
ज़हर पिए मदहोश अँधेरी रात
बदनाम नज़र
गुम-शुदा मौसम का आँखों में कोई सपना सा था
बदनाम नज़र
मुझ को नहीं मालूम कि वो कौन है क्या है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
वही जिंस-ए-वफ़ा आख़िर फ़राहम होती जाती है
बीएस जैन जौहर
घटा सावन की उमडी आ रही है
बीएस जैन जौहर
तारीक उजालों में बे-ख़्वाब नहीं रहना
अज़रा वहीद
फ़ज़ा का रंग निखरता दिखाई देता है
अज़रा वहीद
सुब्ह के दो मंज़र
अज़रा नक़वी
ख़्वाब-जंगल
अज़रा नक़वी
मो'तबर से रिश्तों का साएबान रहने दो
अज़रा नक़वी
किसी ख़याल की हिद्दत से जलना चाहती हूँ
अज़रा नक़वी
नहीं
अज़रा अब्बास