ख्वाब Poetry (page 58)
अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!
बाक़र मेहदी
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
बाक़र मेहदी
महव-ए-फ़रियाद हो गया है दिल
बाक़र आगाह वेलोरी
मुझे इक शेर कहना है
बक़ा बलूच
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
बक़ा बलूच
खुला मकान है हर एक ज़िंदगी 'आज़र'
बलवान सिंह आज़र
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं
बलवान सिंह आज़र
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
बलवान सिंह आज़र
ये ज़र्द बच्चे
बलराज कोमल
नन्हा शहसवार
बलराज कोमल
बारिशों में ग़ुस्ल करते सब्ज़ पेड़
बलराज कोमल
दिल के हाथों ख़राब हो जाना
बलराज हयात
ख़्वाब नद्दी सा गुज़र जाएगा
बकुल देव
अब के ताबीर मसअला न रहे
बकुल देव
समाअ'त के लिए इक इम्तिहाँ है
बकुल देव
कौन कहता है ठहर जाना है
बकुल देव
जो है चश्मा उसे सराब करो
बकुल देव
हमें देखा न कर उड़ती नज़र से
बकुल देव
गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम
बकुल देव
चाल अपनी अदा से चलते हैं
बकुल देव
बारिशों में अब के याद आए बहुत
बकुल देव
बार-ए-दीगर ये फ़लसफ़े देखूँ
बकुल देव
हमारे ख़्वाब चोरी हो गए हैं
बख़्श लाइलपूरी
तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे
बख़्श लाइलपूरी
रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत
बख़्श लाइलपूरी
कोई शय दिल को बहलाती नहीं है
बख़्श लाइलपूरी
हम-कलामी में दर-ओ-दीवार से
बहराम तारिक़
ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा
बहराम जी
कब तसव्वुर यार-ए-गुल-रुख़्सार का फ़े'अल-ए-अबस
बहराम जी
ख़्वाब मेरा है ऐन बेदारी
ज़फ़र