ख्वाब Poetry (page 56)
भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम
बशीर सैफ़ी
रुख़ तुम्हारा हो जिधर हम भी उधर हो जाएँगे
बशीर महताब
हम हथेली पे जान रखते हैं
बशीर महताब
शहर-ए-फ़स्ल-ए-गुल से चल कर पत्थरों के दरमियाँ
बशीर फ़ारूक़ी
लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे
बशीर फ़ारूक़ी
मिरी नमाज़ मिरी बंदगी मिरा ईमाँ
बशीर फ़ारूक़
वो कभी शाख़-ए-गुल-ए-तर की तरह लगता है
बशीर फ़ारूक़
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
बशीर बद्र
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
बशीर बद्र
ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं
बशीर बद्र
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
बशीर बद्र
प्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी
बशीर बद्र
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
बशीर बद्र
मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा
बशीर बद्र
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
बशीर बद्र
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
बशीर बद्र
होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते
बशीर बद्र
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
बशीर बद्र
हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है
बशीर बद्र
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
बशीर बद्र
भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
बशीर बद्र
अब तो अँगारों के लब चूम के सो जाएँगे
बशीर बद्र
कैसी कैसी थीं उन्ही गलियों में ज़ेबा सूरतें
बशीर अहमद बशीर
गिरफ़्त-ए-ज़ीस्त में हूँ क़ैद-ए-बे-हिसार में हूँ
बशीर अहमद बशीर
वक़्त के कटहरे में
बशर नवाज़
तो ऐसा क्यूँ नहीं करते
बशर नवाज़
पता नहीं वो कौन था
बशर नवाज़
ना-रसा
बशर नवाज़
सारे मंज़र फ़ुसूँ तमाशा हैं
बशर नवाज़
कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो
बशर नवाज़