ख्वाब Poetry (page 55)
कहाँ ईमान किस का कुफ़्र और दैर-ओ-हरम कैसे
बेदम शाह वारसी
यूँ गुलशन-ए-हस्ती की माली ने बिना डाली
बेदम शाह वारसी
ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है
बेदम शाह वारसी
क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है
बेदम शाह वारसी
न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़
बेदम शाह वारसी
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
बेदम शाह वारसी
खींची है तसव्वुर में तस्वीर-ए-हम-आग़ोशी
बेदम शाह वारसी
काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए
बेदम शाह वारसी
हलाक-ए-तेग़-ए-जफ़ा या शहीद-ए-नाज़ करे
बेदम शाह वारसी
गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने
बेदम शाह वारसी
छिड़ा पहले-पहल जब साज़-ए-हस्ती
बेदम शाह वारसी
बुत भी इस में रहते थे दिल यार का भी काशाना था
बेदम शाह वारसी
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
बेदम शाह वारसी
अपनी हस्ती का अगर हुस्न नुमायाँ हो जाए
बेदम शाह वारसी
अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है
बेदम शाह वारसी
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
बयान मेरठी
ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर
बयान मेरठी
सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था
बयान मेरठी
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
बयान मेरठी
ज़ुल्फ़ तेरी ने परेशाँ किया ऐ यार मुझे
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
पूछता कौन है डरता है तू ऐ यार अबस
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
न फ़क़त यार बिन शराब है तल्ख़
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
वारफ़्तगी-ए-इश्क़ न जाए तो क्या करें
बासित भोपाली
सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए
बासित भोपाली
नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले
बासित भोपाली
मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए
बासित भोपाली
कोई मेयार-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द
बासित भोपाली
हर तरफ़ सोज़ का अंदाज़ जुदागाना है
बासित भोपाली
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
यूँ खुल गया है राज़-ए-शिकस्त-ए-तलब कभी
बशीर ज़ैदी असीर