ख्वाब Poetry (page 54)
सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे
भारत भूषण पन्त
फिर वो बे-सम्त उड़ानों की कहानी सुन कर
भारत भूषण पन्त
पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया
भारत भूषण पन्त
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
भारत भूषण पन्त
किसी भी सम्त निकलूँ मेरा पीछा रोज़ होता है
भारत भूषण पन्त
ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल
भारत भूषण पन्त
कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा
भारत भूषण पन्त
हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे
भारत भूषण पन्त
दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है
भारत भूषण पन्त
चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग
भारत भूषण पन्त
आब की तासीर में हूँ प्यास की शिद्दत में हूँ
भारत भूषण पन्त
सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है
बेख़ुद देहलवी
माशूक़ हमें बात का पूरा नहीं मिलता
बेख़ुद देहलवी
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
हुआ जो वक़्फ़-ए-ग़म वो दिल किसी का हो नहीं सकता
बेख़ुद देहलवी
हो के मजबूर आह करता हूँ
बेख़ुद देहलवी
हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
बेख़ुद देहलवी
बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
बेख़ुद देहलवी
आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते
बेख़ुद देहलवी
आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
बेख़ुद देहलवी
उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ
बेखुद बदायुनी
पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ
बेखुद बदायुनी
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
बेखुद बदायुनी
नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा
बेकल उत्साही
दिमाग़ अर्श पे है ख़ुद ज़मीं पे चलते हैं
बेकल उत्साही
तुम्हारे हुस्न की तस्ख़ीर आम होती है
बहज़ाद लखनवी
इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया
बहज़ाद लखनवी
इक बेवफ़ा को दर्द का दरमाँ बना लिया
बहज़ाद लखनवी
चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है
बहज़ाद लखनवी
किरन में फिर से बदलने लगा ख़याल उस का
बेदार सरमदी