ख्वाब Poetry (page 53)
कितना अजीब शब का ये मंज़र लगा मुझे
बिस्मिल आग़ाई
क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है
बिशन नरायण दराबर
मोहब्बत नग़्मा भी है साज़ भी है
बिर्ज लाल रअना
ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी
बिर्ज लाल रअना
आरज़ूएँ नज़्र-ए-दौराँ नज़्र-ए-जानाँ हो गईं
बिर्ज लाल रअना
वो: एक
बिमल कृष्ण अश्क
प्यार है वो
बिमल कृष्ण अश्क
जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो
बिमल कृष्ण अश्क
ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे
बिमल कृष्ण अश्क
यही इक मश्ग़ला शाम-ओ-सहर है
बिल्क़ीस बेगम
आता है कोई लुत्फ़ का सामाँ लिए हुए
बिल्क़ीस बेगम
नहीं है ख़्वाब दीवाने का हस्ती
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
नज़र आता है वो जैसा नहीं है
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
मिरी हथेली में लिक्खा हुआ दिखाई दे
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
कब एक रंग में दुनिया का हाल ठहरा है
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
हमारी जागती आँखों में ख़्वाब सा क्या था
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
अपनी तो कोई बात बनाए नहीं बनी
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
तुम्हारी याद का इक दायरा बनाती हूँ
बिल्क़ीस ख़ान
उलझ रहा था अभी ख़्वाब की फ़सील से मैं
बिलाल अहमद
सोते में मुस्कुराते बच्चे को देख कर
बिलाल अहमद
मुश्किल
बिलाल अहमद
अजल की फूँक मिरे कान में सुनाई दी
बिलाल अहमद
कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है
भवेश दिलशाद
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
उम्मीदों से पर्दा रक्खा ख़ुशियों से महरूम रहीं
भारत भूषण पन्त
हर घड़ी तेरा तसव्वुर हर नफ़स तेरा ख़याल
भारत भूषण पन्त
सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर
भारत भूषण पन्त