Bewafa Poetry (page 41)
घरौंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते
आशुफ़्ता चंगेज़ी
देख दामन-गीर महशर में तिरे होवेंगे हम
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और
आनिस मुईन
तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
आलोक श्रीवास्तव
हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा
आलोक श्रीवास्तव
उस बेवफ़ा से कर के वफ़ा मर-मिटा 'रज़ा'
आले रज़ा रज़ा
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के
आले रज़ा रज़ा
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
आले रज़ा रज़ा
ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे
आल-ए-अहमद सूरूर
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
आल-ए-अहमद सूरूर
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
आल-ए-अहमद सूरूर
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम
आल-ए-अहमद सूरूर
जब कभी बात किसी की भी बुरी लगती है
आल-ए-अहमद सूरूर
हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है
आल-ए-अहमद सूरूर
ओ सितमगर तिरी तलवार का धब्बा छट जाए
आग़ा अकबराबादी
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
आग़ा अकबराबादी
पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा
आग़ा अकबराबादी
जा लड़ी यार से हमारी आँख
आग़ा अकबराबादी
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
आग़ा अकबराबादी
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम
आग़ा अकबराबादी
चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर
आफ़ताब राईस पानीपती
एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर
आदिल रज़ा मंसूरी