Bewafa Poetry (page 20)
किसी के सितम इस क़दर याद आए
बिस्मिल सईदी
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
बिस्मिल सईदी
ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से
बिस्मिल अज़ीमाबादी
नाम उस का
बिमल कृष्ण अश्क
जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो
बिमल कृष्ण अश्क
ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे
बिमल कृष्ण अश्क
है यूँ कि कुछ तो बग़ावत-सिरिश्त हम भी हैं
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
बदन पे ज़ख़्म सजाए लहू लबादा किया
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989
बिलाल अहमद
रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
न मिला तिरा पता तो मुझे लोग क्या कहेंगे
बेताब लखनवी
उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है
बेख़ुद देहलवी
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
बेख़ुद देहलवी
न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं
बेख़ुद देहलवी
न अरमाँ बन के आते हैं न हसरत बन के आते हैं
बेख़ुद देहलवी
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
बेख़ुद देहलवी
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले
बेख़ुद देहलवी
हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ
बेख़ुद देहलवी
दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा
बेख़ुद देहलवी
दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया
बेख़ुद देहलवी
बेवफ़ा कहने से क्या वो बेवफ़ा हो जाएगा
बेख़ुद देहलवी
बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो
बेख़ुद देहलवी
बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
बेख़ुद देहलवी
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है
बेख़ुद देहलवी
आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप
बेख़ुद देहलवी
आप हैं बे-गुनाह क्या कहना
बेख़ुद देहलवी