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उन के सब झूट मो'तबर ठहरे - हिना हैदर कविता - Darsaal

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

जो मेरे सच थे बे-असर ठहरे

हम भी सौ जाँ निसार कर देंगे

उन की हम पर जो इक नज़र ठहरे

तिनका तिनका बिखर गया आख़िर

कैसे तूफ़ाँ में कोई घर ठहरे

दिन की ख़ुशियाँ न ग़म की रात बनें

वक़्त का भी कभी सफ़र ठहरे

मसअले एक पल में हल हो जाएँ

तू अगर मेरा चार-गर ठहरे

उस से कह तो दिया चला जाए

दिल ये कहता रहा मगर ठहरे

कोई तदबीर हो वो लौट आएँ

पाँव थक जाएँ रहगुज़र ठहरे

जिन कि निस्बत सियाह शब से न हो

मेरे आँगन में वो सहर ठहरे

एक आहट की आस में कब से

हैं 'हिना' दिल के बाम-ओ-दर ठहरे

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