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सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा - हिलाल फ़रीद कविता - Darsaal

सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा

सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा

हम ने क्या क्या तीर चलाना इश्क़ में सीखा

रीत के आगे प्रीत निभाना इश्क़ में सीखा

साधू बन कर मस्जिद जाना इश्क़ में सीखा

इश्क़ से पहले तेज़ हवा का ख़ौफ़ बहुत था

तेज़ हवा में हँसना गाना इश्क़ में सीखा

हर इक सरहद फाँद चुका था सरकश दरिया

उस दरिया को मोड़ के लाना इश्क़ में सीखा

इश्क़ किया तो ज़ुल्म हुआ और ज़ुल्म हुआ जब

ज़ुल्म के आगे सर न झुकाना इश्क़ में सीखा

अपने दुख में रोना-धोना आप ही आया

ग़ैर के दुख में ख़ुद को दुखाना इश्क़ में सीखा

इश्क़ का जादू क्या होता है हम से पूछो

धूल में मिल कर फूल खिलाना इश्क़ में सीखा

कुछ भी 'हिलाल' अब डींगें मारो लेकिन तुम ने

महफ़िल महफ़िल धूम मचाना इश्क़ में सीखा

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