न दर्द था न ख़लिश थी न तिलमिलाना था
किसी का इश्क़ न था वो भी क्या ज़माना था
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कहेगी हश्र के दिन उस की रहमत-ए-बे-हद
ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा
क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई
हज़ार रंज हैं अब ये भी इक ज़माना है
सितम तीर-ए-निगाह-ए-दिलरुबा था
अक्स से अपने वो यूँ कहते हैं आईने में
आया भी कोई दिल में गया भी कोई दिल से
कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले
मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था
तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है
शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा