मुझे वो याद करते हैं ये कह कर
ख़ुदा बख़्शे निहायत बा-वफ़ा था
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क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई
सितम तीर-ए-निगाह-ए-दिलरुबा था
न दर्द था न ख़लिश थी न तिलमिलाना था
दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया
वो ये कहते हैं ज़माने की तमन्ना मैं हूँ
तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है
कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा
कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले
ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा
हज़ार रंज हैं अब ये भी इक ज़माना है