कभी ये फ़िक्र कि वो याद क्यूँ करेंगे हमें
शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा
ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया
वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा
मुझे वो याद करते हैं ये कह कर
न दर्द था न ख़लिश थी न तिलमिलाना था
कहेगी हश्र के दिन उस की रहमत-ए-बे-हद
अक्स से अपने वो यूँ कहते हैं आईने में
क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई
वो ये कहते हैं ज़माने की तमन्ना मैं हूँ