ज़िंदगी से मिली सौग़ात ये तन्हाई की
ज़िंदगी से मिली सौग़ात ये तन्हाई की
ख़्वाब टूटे हैं कई आँख में सहराई की
क्यूँ सर-ए-बज़्म मिरी उस ने पज़ीराई की
उस में साज़िश तो नहीं फिर से मिरे भाई की
बर्क़ मंज़र से निगाहों की बसारत छीने
फ़िक्र दुश्मन को मिरे है मिरी बीनाई की
लोग चेहरे पे उदासी का सबब पूछेंगे
क्या कहूँगा कि मुझे फ़िक्र है रुस्वाई की
लोग बाहर से समझते हैं बहुत ख़ुश हूँ मैं
क्या ख़बर उन को मिरे ज़ख़्म की गहराई की
मैं भी आऊँगा तुझे देने मुबारकबादी
जब भी आवाज़ सुनूँगा तिरी शहनाई की
छीन कर मुँह से ग़रीबों के निवाले 'शम्सी'
हाकिम-ए-वक़्त ने क्या ख़ूब मसीहाई की
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