तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई
तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई
जो उस ने ज़ख़्म दिखाया तो आँख भर आई
थी जिस चराग़ से क़ाएम मिरी उमीद-ए-सहर
हवा ने उस को बुझाया तो आँख भर आई
ज़माने-भर का सितम सह के मुस्कुराता रहा
फ़रेब अपनों से खाया तो आँख भर आई
हमारे शहर की गलियों में क़हर ढाते हुए
लहू का सैल दर आया तो आँख भर आई
सबा ने आह ख़िज़ाओं के साथ मिल कर फिर
गुलों का रंग उड़ाया तो आँख भर आई
जबीन-ए-हाल पे माज़ी की तल्ख़ यादों ने
सुनहरा नक़्श बनाया तो आँख भर आई
तमाम उम्र तो अपनों की ठोकरों में रहे
किसी ने सर पे बिठाया तो आँख भर आई
बिछड़ते वक़्त किसी ने जो प्यार से 'शम्सी'
मचल के हाथ हिलाया तो आँख भर आई
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