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फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा - हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी कविता - Darsaal

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

तुम अकेले घर से निकलो क़ाफ़िला मिल जाएगा

तंग-ज़र्फ़ी ख़ुश्क कर डालेगी दरिया देख ले

हम को क्या कोई समुंदर दूसरा मिल जाएगा

कर रहा हूँ मैं तआ'क़ुब गर्दिश-ए-अय्याम का

इक न इक दिन ज़िंदगी तेरा पता मिल जाएगा

आँधियो आ जाओ खुल कर मैं चराग़-ए-तूर हूँ

मुझ से टकराने का तुम को भी मज़ा मिल जाएगा

तंग मत कर ऐ ज़मीं कर दें इशारा इक अगर

आसमानों से भी हम को आसरा मिल जाएगा

संग-ए-फ़ुर्क़त मार कर मत जाओ मुझ को छोड़ कर

दिल का शीशा तोड़ने से यार क्या मिल जाएगा

साहिलों पर रहने वालो इक ज़रा आवाज़ दो

ग़र्क़ होती कश्तियों को हौसला मिल जाएगा

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