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मुझे तेरी जुदाई का ये सदमा मार डालेगा - हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी कविता - Darsaal

मुझे तेरी जुदाई का ये सदमा मार डालेगा

मुझे तेरी जुदाई का ये सदमा मार डालेगा

ज़माने भर में रुस्वाई का चर्चा मार डालेगा

तुम्हारे नाम से जानाँ मिरा ये दिल धड़कता है

अब आओ हाथ रख दो वर्ना धड़का मार डालेगा

कोई ग़मगीन मिल जाए तो हँसना भूल जाता हूँ

किसी दिन ख़ैर-ख़्वाही का ये जज़्बा मार डालेगा

चराग़ों में लहू डालो है लड़नी जंग ज़ुल्मत से

वगरना अब उजालों को अंधेरा मार डालेगा

ज़मीं के सुर्ख़ मंज़र रात को सोने नहीं देते

किसी दिन मुझ को ये एहसास मेरा मार डालेगा

ज़मीं पर एड़ियाँ रगड़ो कि अब चश्मा कोई फूटे

बहुत ज़ालिम है दरिया हम को प्यासा मार डालेगा

समुंदर पार करना इश्क़ का आसाँ नहीं 'शम्सी'

भँवर से बच भी जाएँ तो किनारा मार डालेगा

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