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सुकून-ए-दिल के लिए और क़रार-ए-जाँ के लिए - हीरा लाल फ़लक देहलवी कविता - Darsaal

सुकून-ए-दिल के लिए और क़रार-ए-जाँ के लिए

सुकून-ए-दिल के लिए और क़रार-ए-जाँ के लिए

तुम्हारा नाम है काफ़ी मिरी ज़बाँ के लिए

जो पुर है जाम तो कुछ ख़ौफ़-ए-हादसात नहीं

हमारे पास भी बिजली है आसमाँ के लिए

ख़मोशी-ए-रह-ए-मंज़िल से ये हुआ साबित

कि मंज़िलें भी तरसती हैं कारवाँ के लिए

मिसाल-ए-शम्स-ओ-क़मर गर्दिशों में रहते हैं

ख़ुदा ने जिन को बनाया है आसमाँ के लिए

हवस ने ख़ुल्द अजल ने छुड़ाई ये दुनिया

ख़बर नहीं मिरी मिट्टी है अब कहाँ के लिए

शब-ए-फ़िराक़ दुआ माँग कर गुज़ारी है

कभी असर के लिए और कभी फ़ुग़ाँ के लिए

हमारे ज़ेहन में दिल में लहू में उर्दू है

जिएँगे और मरेंगे इसी ज़बाँ के लिए

पहुँच गए सर-ए-मंज़िल जो हम-सफ़र थे 'फ़लक'

हमीं तरसते रहे गर्द-ए-कारवाँ के लिए

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