साक़िया ये जो तुझ को घेरे हैं
साक़िया ये जो तुझ को घेरे हैं
इन में कुछ रिंद कुछ लुटेरे हैं
अपनी तहज़ीब खा रही है हमें
साँप के मुँह में ख़ुद सपेरे हैं
जिस ने बख़्शे हैं फूल गुलशन को
उस ने कुछ ख़ार भी बिखेरे हैं
कल जो तूफ़ान था समुंदर में
उस के अब साहिलों पे डेरे हैं
तेरे बारे में कुछ नहीं मा'लूम
हम अगर हैं तो सिर्फ़ तेरे हैं
होश-ओ-ग़फ़लत में पास ही मौजूद
मुझ को वो हर तरफ़ से घेरे हैं
तुम से तो क्या नज़र मिलाएँगे
ख़ुद से भी हम निगाह फेरे हैं
दर-हक़ीक़त वही अदू हैं 'फ़लक'
जिन को कहता है तू कि मेरे हैं
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