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मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना - हीरा लाल फ़लक देहलवी कविता - Darsaal

मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना

मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना

तुझ को ऐ हुस्न मुबारक हो मिरा दिल होना

ख़ुश्क हो जाएँ जो आँखें तो ग़म-ए-फ़ुर्क़त क्या

चाहिए और भी तर दीदा-ए-बिस्मिल होना

उस पे मुश्किल कोई पड़ जाए तो आसाँ हो जाए

हौसला बख़्शे जिसे काम का मुश्किल होना

ला मिरा जाम उठा अपनी सुराही साक़ी

आज है गर्दिश-ए-दौराँ के मुक़ाबिल होना

अब कहे जाओ फ़साने मिरी ग़र्क़ाबी के

मौज-ए-तूफ़ाँ को मिरे हक़ में था साहिल होना

क़ैस लैला की नज़र से ही बना था मजनूँ

उस का अच्छा है पस-पर्दा-ए-महमिल होना

मस्त उल्फ़त हों मिरा नाम है दीवाना-ए-हुस्न

काम है होश में आना कभी ग़ाफ़िल होना

कितनी उम्मीद से बढ़ते हैं मुसाफ़िर के क़दम

क़ुदरती है ग़म-ए-नाकामी-ए-मंज़िल होना

आज के दौर में कम बात नहीं है ये 'फ़लक'

एक फ़न में किसी इंसान का कामिल होना

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