अश्क-ए-ग़म वो है जो दुनिया को दिखा भी न सकूँ
अश्क-ए-ग़म वो है जो दुनिया को दिखा भी न सकूँ
और गिर जाए ज़मीं पर तो उठा भी न सकूँ
ये मिरे ग़म का फ़साना है रहेगा लब पर
तेरी रूदाद नहीं है कि सुना भी न सकूँ
परतव-ए-हुस्न हूँ इस वास्ते महदूद हूँ मैं
हुस्न हो जाऊँ तो दुनिया में समा भी न सकूँ
तेज़ कुछ वक़्त की रफ़्तार नहीं है लेकिन
तुम अगर साथ न दो पाँव बढ़ा भी न सकूँ
अब वही लोग बिगाड़ी है जिन्हों ने क़िस्मत
चाहते हैं कि मैं तक़दीर बना भी न सकूँ
आज नाकाम सही कल का भरोसा है मुझे
इश्क़ फिर क्या जो तुझे अपना बना भी न सकूँ
दिल कहाँ एक सियह-ख़ाना है रंज-ओ-ग़म का
इस क़दर दाग़ लगे हैं कि मिटा भी न सकूँ
दिल की गहराई से ऐ दोस्त ज़रा कह तो सही
जान ऐसी तो नहीं जिस को गँवा भी न सकूँ
उम्र गुज़री कभी साक़ी ने 'फ़लक' ये न कहा
इतनी पी ले कि तुझे होश में ला भी न सकूँ
(839) Peoples Rate This