फिर फ़ज़ा धुँदला गई आसार हैं तूफ़ान के
फिर फ़ज़ा धुँदला गई आसार हैं तूफ़ान के
काँपते हैं फूल कमरे में मिरे गुल-दान के
चल रहे हैं दिल में नख़लिस्तान का अरमाँ लिए
हम मुसाफ़िर ज़िंदगी के तपते रेगिस्तान के
सैल-ए-ग़म रखता है यूँ मेरे इरादों को जवाँ
जिस तरह सैलाब में फलते हैं पौदे धान के
तोड़ देगा इक न इक दिन ये तिलिस्म औहाम का
साफ़ देते हैं पता तेवर नए इंसान के
दोस्तो जिस दम उतर जाता है गंदुम का ख़ुमार
ज़ेहन की शाख़ों से उड़ जाते हैं पंछी ध्यान के
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