हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर
हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर
पंछी वो फड़ फड़ा के गिरा साएबान पर
शायद उसी से ज़ेहन का जंगल महक उठे
लफ़्ज़ों के गुल खिलाइए शाख़-ए-ज़बान पर
किस दिल की राख जुज़्व-ए-रग-ए-संग हो गई
सूरज-मुखी का फूल खिला है चटान पर
इक दिन उसे ज़मीं की कशिश खींच लाएगी
कब तक रहेगा तेरा ख़याल आसमान पर
आवाज़ की महक न कभी क़ैद हो सकी
पहरे लगे हज़ार गुलों की ज़बान पर
(1017) Peoples Rate This