है इख़्तियार हमें काएनात पर हासिल
सवाल ये है कि हम किस के इख़्तियार में हैं
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जो मय-कदे में बहकते हैं लड़खड़ाते हैं
दास्तान-ए-फ़ितरत है ज़र्फ़ की कहानी है
महदूद-निगाही के सनम टूट रहे हैं
फ़सील-ए-शुक्र में हैं सब्र के हिसार में हैं
हमें उजाल दे फिर देख अपने जल्वों को