जो मय-कदे में बहकते हैं लड़खड़ाते हैं

जो मय-कदे में बहकते हैं लड़खड़ाते हैं

मिरा ख़याल है वो तिश्नगी छुपाते हैं

ज़रा सा वक़्त के सूरज ने रुख़ जो बदला है

मिरे वजूद पे कुछ साए मुस्कुराते हैं

दिलों की सम्त पे लफ़्ज़ों के संग मत फेंको

ज़रा सी ठेस से आईने टूट जाते हैं

तिलिस्म-ए-ज़ात की फैली है तीरगी इतनी

कि वुसअ'तों के उजाले सिमटते जाते हैं

सितम-ज़रीफ़ी-ए-हालात का करिश्मा है

भटकने वाले मुझे रास्ते बताते हैं

जिन्हें 'हयात' शुऊर-ए-हयात हासिल है

फ़रेब देते नहीं हैं फ़रेब खाते हैं

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Jo Mai-kade Mein Bahakte Hain LaDkhaDate Hain In Hindi By Famous Poet Hayat Warsi. Jo Mai-kade Mein Bahakte Hain LaDkhaDate Hain is written by Hayat Warsi. Complete Poem Jo Mai-kade Mein Bahakte Hain LaDkhaDate Hain in Hindi by Hayat Warsi. Download free Jo Mai-kade Mein Bahakte Hain LaDkhaDate Hain Poem for Youth in PDF. Jo Mai-kade Mein Bahakte Hain LaDkhaDate Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Jo Mai-kade Mein Bahakte Hain LaDkhaDate Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.