वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ
वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ
अब ऐसे शख़्स को मैं अपना हाल क्या लिक्खूँ
किसी का ज़ौक़-ए-समाअत क़ुसूर-वार नहीं
मैं क्यूँ न हर्फ़-ए-तमन्ना को बे-सदा लिक्खूँ
अब आते लम्हों के आसार ये बताते हैं
जो वक़्त बीत गया उस को हादसा लिक्खूँ
मुझे तअल्लुक़-ए-ख़ातिर हो क्या ज़माने से
किसी के नाम भी ख़त हो तिरा पता लिक्खूँ
इसी ख़याल से फ़िक्र-ए-सुख़न में ग़लताँ हूँ
मैं चाहता हूँ कि मज़मूँ कोई नया लिक्खूँ
ये ख़ुद-सताई के पहलू ये एहतियात 'हयात'
कभी तो साफ़ कोई अपना वाक़िआ लिक्खूँ
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