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चमन वही है घटाएँ वही बहार वही - हया लखनवी कविता - Darsaal

चमन वही है घटाएँ वही बहार वही

चमन वही है घटाएँ वही बहार वही

मगर गुलों में वो अब रंग-ओ-बू नहीं बाक़ी

है दिल-कशी में वही अब भी मौसमों की बहार

नज़र में कैफ़ियत-ए-रंग-ओ-बू नहीं बाक़ी

शबाब-ए-दह्र की अब भी है वो फ़रावानी

मगर ख़याल में जोश-ए-नुमू नहीं बाक़ी

है दिल में दर्द भी पहलू में दिल भी है लेकिन

किसी के दर्द पे रोने की ख़ू नहीं बाक़ी

हरम की शम-ए-फ़रोज़ाँ है आज भी लेकिन

तजस्सुस-ए-नज़र-ए-शोला-ए-जू नहीं बाक़ी

गले तो मिलते हैं अहबाब ऐ 'हया' अब भी

मगर दिलों में सदाक़त की बू नहीं बाक़ी

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