Hope Poetry of Hatim Ali Mehr
नाम | हातिम अली मेहर |
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अंग्रेज़ी नाम | Hatim Ali Mehr |
काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ मुश्ताक़-ए-शहादत भी हूँ
ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया
उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा
उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम
पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस
नाला-ए-गर्म के और दम सर्द भरे क्या जिएँ हम तो मरे
कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
कोई ले कर ख़बर नहीं आता
खुल गया उन की मसीहाई का आलम शब-ए-वस्ल
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम
जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा
गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही
गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था
दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई
दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया
दरिया तूफ़ान बह रहा है
बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
बुतों का ज़िक्र कर वाइ'ज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
बुतों का सामना है और मैं हूँ
आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और