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उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम - हातिम अली मेहर कविता - Darsaal

उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम

उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम

हम को मुल्क-ए-अदम मिला हमदम

हाल-ए-दिल 'मेहर' का खुला हमदम

दर्द हमदर्द-ए-दिल हुआ हमदम

वालिह-ए-काकुल-ए-रसा हमदम

सर-ए-सौदा का हो रहा हमदम

दर्द हम को हुआ दवा हमदम

और लिल्लाह दिल दुखा हमदम

दिल का हासिल हो मुद्दआ' हमदम

रहम कर आ इधर को आ हमदम

अल्लाह अल्लाह लाला-ए-कोहसार

गुल-ए-लौह-ए-लहद हुआ हमदम

मौसम-ए-गुल हो कोह-ए-सहरा हो

सर हो सौदा हो वल-वला हमदम

हम को दौरा-ए-सुरूर वादा-ए-वस्ल

दौर होगा मुदाम का हमदम

हुक्म हम को हुआ कि गुल खाओ

वाह वाह और गुल खिला हमदम

होगा मा'लूम हाल-ए-रूह अल्लाह

ला'ल-ए-दिल-दार गर हिला हमदम

अल्लाह अल्लाह आह-ए-सर्द-ए-सहर

गर्म किस किस तरह हुआ हमदम

किस तरह का मोआ'मला होगा

वस्ल उस का अगर हुआ हमदम

किस तरह ताले-ए-अदू हो साद

किस तरह उल्लू हो हुमा हमदम

हम को उस ला'ल का दिखा आलम

मुस्कुरा कर लहू रुला हमदम

दाम-ए-काकुल हो सिलसिला हमदम

गर सर-ए-मू गिरह हो वा हमदम

दिल का वो हाल इस का वो आलम

किस का हो हम को आसरा हमदम

रखो 'मेहर' उस को लिक्खो और तरह

दौर-ए-किल्क-ए-मुदाम ला हमदम

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