सर झुकाता नहीं कभी शीशा
सर झुकाता नहीं कभी शीशा
हम से करता है सर-कशी शीशा
कुर्र-ए-नार है मिरा सीना
शीशा-ए-दिल है आतिशी शीशा
दिल में रक्खा था उस को दिल भी गया
उड़ गई ले के इक परी शीशा
दुख़्तर-ए-रज़ पे ज़ोर-ए-आलम है
इस परी से हुआ परी शीशा
ख़ून रोता है क़हक़हे के साथ
ख़ूब हँसता है ये हँसी शीशा
ज़ख़्म-ए-दिल का जो फट गया अंगूर
होएगा मय का मुस्तजी शीशा
याद आता है मुझ को दिल ऐ 'मेहर'
देखता हूँ मैं जब कभी शीशा
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